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मिनी कुंभ आज से शुरू, लाखों श्रद्धालु लगाएंगे आस्था की डुबकी - Suvichar News

कुम्भ मेला आज से शुरू

कुम्भ मेला: गढ़मुक्तेश्वर का इतिहास काफी ऐतिहासिक और पौराणिक (
Historical and mythological) है। पुरोहितों का कहना है कि इस स्थान पर भगवान शिव (Lord Shiva) के गणों को मुक्ति मिली थी। इन गणों को मुक्ति मिलने से इस स्थान का नाम गणमुक्तेश्वर (Ganmukteshwar) हुआ था, लेकिन इसके बाद बोलचाल में इसका नाम गढ़मुक्तेश्वर हो गया। 

स्नान से मिलती है मुक्ति


कार्तिक की बैकुंठ चतुर्दशी को गढ़ की गंगा में स्नान कर लोग यहां मृत परिवारवालों की मुक्ति और आत्मा की शांति के लिए गंगा में दीपदान करते हैं। दीपदान का दृश्य काफी मनोरम होता है।

मेले में आए मुस्लिम समुदाय के व्यापारी अजान के बाद गंगाजल से वजू कर रेतीले मैदान में खुदा पाक की रजा के लिए नमाज अता कर देश की खुशहाली और अमचैन की दुआ करते हैं। इस अनूठे संगम से गंगा का विशाल किनारा इन दिनों विभिन्न धार्मिक रंगों में डूबा हुआ है। हाजी शरीफ, गुड्डू, रज्जाक ने बताया कि गंगा खादर का यह मेला सचमुच सांप्रदायिक सौहार्द की अनूठी मिसाल है।

मेला स्थल पर महिलाओं और बच्चों की खरीदारी के लिए मीना बाजार भी अब सजने लगा है। सोमवार सुबह तक पूरा बाजार सजकर तैयार हो जाएगा।



गढ़मुक्तेश्वर में लगने वाले मेले के लिए गाजियाबाद और मेरठ रीजन की 200 रोडवेज बसों को गढ़ और ब्रजघाट के लिए लगाया है, जबकि बाकी बसों को रिजर्व में भी रखा गया है। गंगा मेला जाने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी नहीं होने दी जाएगी।

गढ़मुक्तेश्वर के खादर क्षेत्र में आज से कार्तिक मेला शुरू हो रहा है। मेरठ मंडल कमिश्नर अनीता सी. मेश्राम सोमवार को मेले का शुभारंभ करेंगी। आस्था के इस पर्व पर श्रद्धालु गंगा में डुबकी लगाएंगे। मेला सोमवार से 25 नवंबर तक चलेगा, जबकि मुख्य स्नान 23 नवंबर को है। इस महाभारतकालीन मेले को श्रद्घालु 'मिनी कुंभ' मेले का नाम भी देने लगे हैं। इसमें कई राज्यों से लाखों लोग स्नान करने आते हैं। इस वर्ष मेले में 35 से 40 लाख श्रद्घालुओं के आने का अनुमान है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा में स्नान करना पुरानी परंपरा है, लेकिन बदलते दौर में पुरानी परंपराएं खत्म होती जा रही हैं। इसी के चलते 'लक्खी' मेले के नाम से प्रसिद्ध कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाले मेले का स्वरूप बदलता जा रहा है। मेले में सबसे ज्यादा बिकने वाले गुड़ का स्थान अब चाऊमीन ने ले लिया है। पुराने जमाने में चिट्ठी के माध्यम से डेरा डालने के लिए स्थान तय किया करते थे, ताकि किसी को रुकने में कोई दिक्कत न हो। करीब 3 दशक पहले श्रद्धालु परंपरागत तरीके से बैल-गाड़ियों पर सवार होकर आया करते थे, जिससे आने-जाने में कई दिनों का समय लग जाया करता था, लेकिन आज के बदलते दौर में टेंपों, कार और बाइक जैसे वाहनों से श्रद्धालु आने लगे। श्रद्धालु यहां झूला, सर्कस, मौत का कुआं, काला जादू, टूरिंग टॉकीज आदि का आनंद लिया करते हैं। करीब 4 दशक पहले अधिकांश श्रद्धालु 2 सप्ताह तक यहीं पर ठहरा करते थे। विभिन्न जगहों से आने वाले लोग भाषा, पहनावा और रीति रिवाज से परिचित हुआ करते थे।

सुविचार फार यू


"भगवान शिव को शम्भू, शंकर, महादेव तथा नीलकंठ आदि अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। उनके प्रत्येक नाम का अपना महत्व है। शिव की महिमा अपार है। शब्दों में उनकी व्याख्या करना असम्भव है। भगवान शिव की स्तुति करते समय हमारे ऋषियों ने लिखा है कि काले पत्थर की स्याह, समुद्र की दवात, कल्प द्रुम की लेखनी और पूरी पृथ्वी को कागज बना कर साक्षात माता सरस्वती उनकी महिमा लिखे, तब भी भगवान शिव की महिमा नहीं लिखी जा सकेगी।"

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