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याद

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याद आती हो इस चांदनी रात में

याद आती हो मेरी हर बात में

कमबख्त, ये बसंत भी बसंत ना रहा

तेरी यादों का अब, कोई अंत ना रहा |

तारों के टूटने की आवाज सी आती है

वीरान पड़े इस दिल में, एक हलचल सी हो जाती है

पत्थर से दरिया, अब निकलता भी नहीं

तुम्हें भूलने का जरिया, अब मिलता भी नहीं |

काश, तेरी यादों का पिटारा बना लेता

तेरी एक-एक बात को, सितारा बना लेता

जाने दो, तेरी यादों को अब यहीं छोड़ देता हूँ

इस मुकाम पर अब, जिंदगी को नया मोड़ देता हूँ ||
- श्रीधर शर्मा (Sridhar Sharma)

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