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Kabir Amrit Vani-2


शब्द न करैं मुलाहिजा, शब्द फिरै चहुं धार। आपा पर जब चींहिया, तब गुरु सिष व्यवहार।।
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि शब्द किसी का मूंह नहीं ताकता। वह तो चारों ओर निर्विघ्न विचरण करता है। जब शब्द ज्ञान से अपने पराये का ज्ञान होता है तब गुरु शिष्य का संबंध स्वतः स्थापित हो जाता है।



कबीर गर्व न कीजिए, ऊंचा देखि आवास काल परौं भूईं लेटना, ऊपर जमसी घास
भावार्थ- अपना शानदार मकान और शानशौकत देख कर अपने मन में अभिमान मत पालो जब देह से आत्मा निकल जाती हैं तो देह जमीन पर रख दी जाती है और ऊपर से घास रख दी जाती है।



गाहक मिलै तो कुछ कहूं, न तर झगड़ा होय अन्धों आगे रोइये अपना दीदा खोय
अर्थ: कोई ऐसा व्यक्ति मिले जो अपनी बात समझता हो तो उससे कुछ कहें पर जो बुद्धि से अंधे हैं उनके आगे कुछ कहना बेकार अपने शब्द व्यर्थ करना है।




खीरा सिर ते काटिये, मलियत नमक लगाय। रहिमन करुये मुखन को, चहियत इहै सजाय॥

अर्थ: खीरे को सिर से काटना चाहिए और उस पर नमक लगाना चाहिए। यदि किसी के मुंह से कटु वाणी निकले तो उसे भी यही सजा होनी चाहिए।



जे गरीब पर हित करैं, हे रहीम बड़ लोग। कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

अर्थ: जो गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना है।
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